यक्षिणी साधना सिद्धि
यक्षिणी साधना सिद्धि करने से पूर्व साधक को शुद्धिकरण कर लेना आवश्यक है । अगर साधक के पास यक्षिणी साधना से पूर्व कोई ईस्ट न हो और न ही उसके पास किसी प्रकार की सिद्धि हो और वो पहली बार यक्षिणी साधना से आरम्भ करने जा रहा है तो आवश्यक है और उचित है की सबसे पहले किसी अचे गुरु के शरण में जाये और शुद्धिकरण करले शुद्धिकरण के कुछ विशेष नियम होते है । प्राण शुद्धि, वायु शुद्धि, मल शुद्धि, मूत्र शुद्धि, सरीर शुद्धि और अंत में आत्म शुद्धि और शुद्धिकरण के उपरान्त साधक उसी प्रकार से तेजस्वी और निर्मल हो जाता है जिस प्रकार गंगा का जल और सूर्य का प्रकाश होता है । उसके मन से सभी प्रकार से वासना, काम, माया, लोभ, भय, मोह, लालसा का अंत हो जाना ही शुद्धिकरण कहलाता है । जो साधक पूर्ण रूप से सुद्ध नहीं है वो किसी भी प्रकार से साधना करले सरलता से सफल नहीं हो पता और अंत में विधि और साधना के नियम को दोष देता है या फिर खुद से अपना विनाश करलेता है । यक्षिणी साधना में कई प्रकार की साधनाओ का उल्लेख मिलता है जिसमे यक्षिणी अत्यंत सुन्दर रूप में प्रगट होती है और वो पल ऐसा होता है की कोई भी साधक अपना आप खो सकता है ऐसे में यक्षिणी बजाये उसको लाभ देने से उसका अनिष्ट ही करती है और यक्षिणी शाप देने भी सक्छम होती है इसलिए ये आवश्यक है की यक्षिणी साधना के उपरांत अगर यक्षिणी के दर्शन हो तो उचित व्यवहार किया जाये और ये हमेसा जरुरी नहीं की यक्षिणी सुन्दर रूप में ही प्रगट हो कई यक्षिणी साधना ऐसी होती है जिनमे आपको किसी पेड़ या नदी किनारे या सुनसान वन में जाकर ही साधना करनी होती है ऐसे में यदि यक्षिणी किसी भयानक रूप में सामने आ जाये या कुछ ऐसे भरम पैदा करदे जिनसे आप भयभीत हो जाये तो आप क्या करेंगे ? ऐसे में संयम और नियम का पालन बहुत जरुरी है चाहे जो हो जाये एक साधक को यक्षिणी साधना में या किसी अन्य साधना में कभी भी अपना विस्वास गुरु पर से, खुद पर से, अपने मंत्रो से नहीं खोना चाहिए और साधक को निर्भय और सुद्ध होना चाहिए । शुद्धिकरण के मार्ग से होकर गुजरना अत्यंत कठिन है और जो साधक इस पथ से होकर गुजर जाता है उसको कोई भी शक्ति किसी प्रकार से विचलित नहीं कर सकती और ऐसे साधक साधना और तंत्र मार्ग से निश्चित रूप से सफल होते है । कोई साधक ११००० यक्षिणी मंत्र जप से ही यक्षिणी दर्शन कर लेता है और वही कुछ साधक १ लाख मंत्रो के बाद ही दर्शन कर पते है इसको आप क्या कहेगे ? परन्तु हताश न हो अपने कर्मा पे विस्वास रखे और लोभ काम, वासना, भय, मोह से रहित होक ही साधक को साधना करनी चाहिए । यक्षिणी साधना में एक विधि ऐसी भी होती है जिसमे यक्षिणी मंत्रो से यक्षिणी को प्रसन्न करके मनचाहा कार्य सिद्ध किया जा सकता है और मदद ली जा सकती है ऐसे में जरुरी नहीं की यक्षिणी प्रत्यक्ष हो । ऐसे साधना सरल होती है और कुछ समय में ही पूर्ण हो जाती है इसके उलट यक्षिणी साधना में वृहद् विधि भी होती है जिसमे यक्षिणी को प्रत्यक्ष होने के लिए विवश होना होता है ऐसे साधनाओ में समय लगता है और साथ ही साधक को पूर्ण रूप से ब्रम्हचर्य होना आवश्यक है साथ ही शुद्धिकरण के बाद ही ये साधना संभव हो पाती है । यक्षिणी साधना के माध्यम से धन, वैभव, सुख, समृद्धि, लाभ, विजय, निरोगता सबकुछ संभव हिअ फिर भी इन सभी की लालसा का त्याग करे ही साधक यक्षिणी साधना कर सकता है । क्या प्राप्त होगा और क्या किया जा सकता है ये बाद का विषय है परन्तु साधना से पूर्व कभी भी मन में कोई वासना, लालच नहीं रखना चाहिए और हमेशा शांत चित से रहना चाहिए, यक्षिणी साधना के काल में किसी से ज्यादा बात, किसी को अप्सब्द, या विवाद नहीं करना चाहिए और उचित हो अगर साधक गृहस्त जीवन में न हो और अगर साधक गृहस्त हो और यक्षिणी साधना करने के लिए उत्सुक हो तो उचित गुरु के मार्गदर्शन अवस्य प्राप्त करले और आज्ञा उपरांत ही ये साधना करे । यक्षिणी गन्धर्व पिशाच किन्नर ये वो रहस्यी शक्ति है जो की एक प्रकार से हमारे ही जैसे जाती है जो की एक अलग लोक में निवास करती है चुकी ये पृथ्वी के सबसे नजदीक के लोग में रहती है इसलिए हमारी प्राथना और मंत्र शक्ति की तरंगे जल्दी ही इनके पास पहुंच जाती है इस पुरे ब्रम्हांड में मुख्या रूप से ८ डाइमेंशन्स है या यु कहले की ८ मुख्या लोक है जिनमे सबसे निचे यानि तीसरे आयाम में हम यानि मनुष्य जाती निवास करती है इसके ऊपर चतुर्थ आयाम जहा की आत्माये और भूत प्रेत निवास करते है और इसके ऊपर के लोक में गन्धर्व, यक्षिणी, इत्यादि निवास करते है इसमें सबसे ऊपर के लोक यानि आठवे आयाम में देवता और देवियो का निवास होता है और उस आठवे आयाम में मुख्या रूप से ८४ लोक है जिनमे अलग अलग प्रकार से विभिन देवी देवताओ के निवास है इसलिए जब हम किसी देवी या देवता को आवाज देते है तो हमारी आवाज उनतक देर में पहुँचती है क्युकी हमे ३,४,५,६,७,आयाम को पार करते हुए उनतक पहुंचना होता है जिसमे थोड़ा समय लगता है परन्तु ऐसा नहीं की कृपा नहीं प्राप्त होती बस थोड़ी देर होती है सुनवाई में । जबकि हम जब अपने पास के आयाम में रहने वाले किसी शक्ति को मंत्र द्वारा बुलाते है तो वो जल्दी ही सुन लेता है क्युकी वो नजदीक में आयाम में होता है । इसी प्रकार जो लोग भूत प्रेत की साधना करते है वो बहुत जल्दी सफल हो जाते है क्युकी अधिकतर आत्माये इसी लोक में निवास करती है जो की अतृप्त होती है या फिर चौथे आयाम की होती है जो सायद अछि आत्माये होती है जिन्हे मुक्ति मिल चुकी होती है ऐसे साधक जल्दी सफल होते है ।
यक्षिणी साधना में भी कुछ ऐसा ही नियम होता है क्युकी जब आप किसी भी यक्षिणी को मंत्र के माध्यम से बुलाते है तो आपकी तरंगे और ऊर्जा उसके पास जल्दी ही पहुंच जाती है जल्दी सुन लेता है और आपका कार्य सिद्ध हो जाता है परन्तु यदि साधक किसी भी यक्षिणी के मोह माया में फस गया तो उसको निकल पाना मुश्किल हो जाता है । ये हमेशा यद् रखे कोई भी अलौकिक शक्ति कभी भी किसी का दास बनना स्वीकार नहीं करती है और यदि ऐसा होता है तो उस शक्ति को काबू करना जरुरी होता है अगर भावनाओ में बहकर साधक यक्षिणी पे मोहित होता है तो ऐसे में धीरे धीरे वो खुद ही उसका दास बनता चला जाता है और उसकी साधना उसीपर भरी पद जाती है इसलिए कभी भी यक्षिणी के साथ सम्भोग, भावनात्मक लगाव न रखे तो उत्तम होगा इसके विपरीत यक्षिणी को उसी प्रकार सम्मान दे और कृपा प्राप्त करे जैसे आप अपने किसी देवी या देवता की उपासना करते है शक्ति को उस शक्ति का दर्जा दे और अगर ऐसा आप करते है तो आप जीवन भर किसी यक्षिणी से कृपा प्राप्त करते है और उसके सहारे दुष्कर कार्य भी सिद्ध कर सकते है मगर सौंदर्य रूप के प्रति मोहित कदापि न हो
पद्मिनी यक्षिणी
पद्मिनी यक्षिणी अपने साधक को आत्मविश्वास के साथ साथ स्थिरता भी प्रदान करती है. ये यक्षिणीया अपने साधक को मानसिक बल प्रदान करती है जिससे साधक आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ पाता है.
◾कनकावती यक्षिणी
ये यक्षिणी की साधना करने पर साधक में अत्यंत तेजस्विता आ जाती है और साधक की हर एक मनोकामना पूरी करने में मदद करती है.
◾मनोहारिणी यक्षिणी
ये यक्षिणी को सिद्ध करने पर साधक के वक्तित्व में ऐसी सम्मोहन शक्ति आ जाती है जिसकी मदद से साधक किसी को भी अपने वश में कर सकता है.
◾सुर सुन्दरी यक्षिणी
ये यक्षिणी को सिद्ध करने पर साधक को अपार धन की प्राप्ति होती है और एश्वर्य से भरा जीवन जीता है.
◾रति प्रिया यक्षिणी
अगर कोई साधक और साधिका संयमित होकर ये साधना करले तो उसे कामदेव और रति के समान सौन्दर्य प्राप्त होता है.
◾नटी यक्षिणी
अगर कोई साधक नटी यक्षिणी को सिद्ध कर लेता है तो उसके आसपास एक सुरक्षा कवच बन जाता है और साधक को सभी तरह से सुरक्षा मिलती है.
◾कामेश्वरी यक्षिणी
यह साधक को पौरुष प्रदान करती है और सभी मनोकामनाए पूरी करती है.
यक्षिणी साधना में भी कुछ ऐसा ही नियम होता है क्युकी जब आप किसी भी यक्षिणी को मंत्र के माध्यम से बुलाते है तो आपकी तरंगे और ऊर्जा उसके पास जल्दी ही पहुंच जाती है जल्दी सुन लेता है और आपका कार्य सिद्ध हो जाता है परन्तु यदि साधक किसी भी यक्षिणी के मोह माया में फस गया तो उसको निकल पाना मुश्किल हो जाता है । ये हमेशा यद् रखे कोई भी अलौकिक शक्ति कभी भी किसी का दास बनना स्वीकार नहीं करती है और यदि ऐसा होता है तो उस शक्ति को काबू करना जरुरी होता है अगर भावनाओ में बहकर साधक यक्षिणी पे मोहित होता है तो ऐसे में धीरे धीरे वो खुद ही उसका दास बनता चला जाता है और उसकी साधना उसीपर भरी पद जाती है इसलिए कभी भी यक्षिणी के साथ सम्भोग, भावनात्मक लगाव न रखे तो उत्तम होगा इसके विपरीत यक्षिणी को उसी प्रकार सम्मान दे और कृपा प्राप्त करे जैसे आप अपने किसी देवी या देवता की उपासना करते है शक्ति को उस शक्ति का दर्जा दे और अगर ऐसा आप करते है तो आप जीवन भर किसी यक्षिणी से कृपा प्राप्त करते है और उसके सहारे दुष्कर कार्य भी सिद्ध कर सकते है मगर सौंदर्य रूप के प्रति मोहित कदापि न हो
पद्मिनी यक्षिणी
पद्मिनी यक्षिणी अपने साधक को आत्मविश्वास के साथ साथ स्थिरता भी प्रदान करती है. ये यक्षिणीया अपने साधक को मानसिक बल प्रदान करती है जिससे साधक आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ पाता है.
◾कनकावती यक्षिणी
ये यक्षिणी की साधना करने पर साधक में अत्यंत तेजस्विता आ जाती है और साधक की हर एक मनोकामना पूरी करने में मदद करती है.
◾मनोहारिणी यक्षिणी
ये यक्षिणी को सिद्ध करने पर साधक के वक्तित्व में ऐसी सम्मोहन शक्ति आ जाती है जिसकी मदद से साधक किसी को भी अपने वश में कर सकता है.
◾सुर सुन्दरी यक्षिणी
ये यक्षिणी को सिद्ध करने पर साधक को अपार धन की प्राप्ति होती है और एश्वर्य से भरा जीवन जीता है.
◾रति प्रिया यक्षिणी
अगर कोई साधक और साधिका संयमित होकर ये साधना करले तो उसे कामदेव और रति के समान सौन्दर्य प्राप्त होता है.
◾नटी यक्षिणी
अगर कोई साधक नटी यक्षिणी को सिद्ध कर लेता है तो उसके आसपास एक सुरक्षा कवच बन जाता है और साधक को सभी तरह से सुरक्षा मिलती है.
◾कामेश्वरी यक्षिणी
यह साधक को पौरुष प्रदान करती है और सभी मनोकामनाए पूरी करती है.