कुंडली बताएगी पूर्वजन्म में क्या थे और अगले जन्म में क्या बनेंगे
जीवन और मरण इस दुनिया का एकमात्र सत्य है जिसे कोई नकार नहीं सकता। जीवन के बाद मरना एक ज़ाहिर सी बात है, लेकिन इस दुनिया में आने से पहले मनुष्य कहां था और मरने के बाद वह कहां जाता है, यह एक बड़ा सवाल है। हिन्दू मान्यताओं में पुनर्जन्म तथा पूर्वजन्म जैसी नामावलियां प्रसिद्ध हैं, जिनमे पीछे बेहद रोचक तथ्य छिपे हैं। यह तो सभी जानते हैं कि हिन्दू मान्यताओं ने मनुष्य के मरने के बाद उसके यमलोक जाने की मान्यता है। यमलोक के स्वामी यमराज द्वारा मृत व्यक्ति की आत्मा को अपने साथ यमलोक ले जाया जाता है। वहां जाकर उसके पुण्य-पाप की गणना के आधार पर उसे स्वर्ग या फिर नर्क में भेजा जाता है। जहां कुछ समय रखने के बाद उसकी इच्छा शक्ति के अनुसार उसे वापस धरती पर पुनर्जन्म लेने के लिए भेजा जाता है। हिन्दू धर्म में तो यह भी मान्यता है कि जिस आत्मा की जीवन इच्छाएं समाप्त हो जाती है उसे ही ‘मोक्ष’ प्राप्त होता है। ऐसी आत्माएं वहां पहुंचती हैं जहां भगवान का वास होता है। मोक्ष पाने पर यह आत्माएं जीवन-मरण के चक्र से हमेशा के लिए मुक्त हो जाती हैं। लेकिन हिन्दू धर्म में यह भी मान्यता है कि मनुष्य की आत्मा कभी नहीं मरती, वह हमेशा अजर-अमर रहती है। मनुष्य का शरीर उसकी आत्मा से जुड़ा होता है जो उसके जन्म के साथ उसमें आती है तथा उसके मरने के बाद वह शरीर छोड़कर चली जाती है।इसीलिए हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राणी का केवल शरीर नष्ट होता है, आत्मा अमर रहती है। वह आत्मा एक शरीर के नष्ट हो जाने के बाद दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। और एक शरीर में प्रवेश लेने से पहले वह आत्मा किस शरीर में थी, यह सिद्धांत उस आत्मा के पूर्वजन्म को दर्शाता है। लेकिन भारतीय ज्योतिष में इस विषय पर काफी शोध करने के बाद विभिन्न निष्कर्ष निकाले गए हैं।ज्योतिष शास्त्र का कहना है कि मनुष्य का जिस समय जन्म होता है उस समय तथा उस वक्त के ग्रहों की दशा के आधार पर उसकी जन्म-कुंडली तैयार की जाती है। यह जन्म-कुंडली उसके आने वाले जीवन की एक तस्वीर होती है। इसी जन्म-कुंडली की मदद से वह भविष्य की एक झलक पाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक व्यक्ति की यही जन्म-कुंडली उसके पूर्वजन्म तथा पुनर्जन्म की कहानी भी बयां करती है। उस इंसान की आत्मा उसके वर्तमान शरीर के अलावा इससे पहले किस शरीर में वास कर के आई है तथा इस शरीर को छोड़ने के बाद वह किस शरीर का हिस्सा बनेगी, यह सभी बातें उसकी जन्म-कुंडली परिभाषित करती है। जन्म-कुंडली को शिशु के जन्म के समय बनाया जाता है। उस समय, स्थान व तिथि को देखकर उसकी जन्म कुंडली बनाई जाती है। उस समय के ग्रहों की स्थिति के अध्ययन के फलस्वरूप यह जाना जा सकता है कि बालक किस योनि से आया है और मृत्यु के बाद उसकी क्या गति होगी। इन ग्रहों के उच्च तथा नीच स्थान यह दर्शाते हैं कि वह आत्मा किस योनि से आई है तथा मरने के बाद किस शरीर में प्रवेश करेगी। ज्योतिषियों का मानना है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चार या इससे अधिक ग्रह उच्च राशि के अथवा स्वराशि के हों तो उस व्यक्ति ने उत्तम योनि भोगकर यहां जन्म लिया है। या फिर उसकी कुंडली में लग्न ग्रह में उच्च राशि का चंद्रमा हो तो ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म में योग्य वणिक होगा। लेकिन यदि जन्म कुंडली में सूर्य छठे, आठवें या फिर बारहवें भाव में हो तथा साथ ही उस व्यक्ति की राशि तुला हो, तो यह व्यक्ति पूर्वजन्म में भ्रष्ट जीवन व्यतीत करके आया है। किन उसने वह शरीर कैसे छोड़ा, यानी कि उसकी मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई होगी, यह भी कुंडली द्वारा जाना जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि लग्न या सप्तम भाव में राहु हो तो व्यक्ति की पूर्व मृत्यु स्वभाविक रूप से नहीं हुई थी। उसे किसी विशेष प्रकार की परिस्थिति का सामना करना पड़ा होगा, जो अंत में उसकी मृत्यु का कारण बना। कई बार तो जन्म-कुंडली में स्पष्ट रूप से मृत्यु का कारण भी दिया होता है। जैसे कि यदि जन्म-कुंडली में चार या इससे अधिक ग्रह नीच राशि के हों तो ऐसे व्यक्ति ने पूर्वजन्म में निश्चय ही आत्महत्या की होगी। यह सभी तथ्य बेहद हैरान करने वाले होते हैं लेकिन विभिन्न मान्यताओं पर आधारित यह बातें ज्यादातर सच ही मानी जाती हैं। पूर्वजन्म के अलावा अपने वर्तमान शरीर को छोड़ने के बाद वह आत्मा कहां जाती है तथा किस शरीर में प्रवेश करके कैसी ज़िंदगी व्यतीत करेगी, इसकी जानकारी भी उस व्यक्ति की जन्म-कुंडली से पाई जा सकती है। ज्योतिषियों का कहना है कि यदि किसी व्यक्ति की जन्म-कुंडली में कहीं पर भी कर्क राशि में गुरु स्थित हो तो जातक मृत्यु के बाद उत्तम कुल में जन्म लेता है। यानी कि उसका अगला जीवन श्रेष्टठम होगा। इसके अलावा यदि लग्न ग्रह में उच्च राशि का चंद्रमा हो तथा कोई पापग्रह उसे न देखते हों तो ऐसे व्यक्ति को मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होती है। लेकिन किन्हीं कारणों से यदि व्यक्ति की जन्म-कुंडली में अष्टम भाव पर मंगल की दृष्टि हो तथा लग्नस्थ मंगल पर नीच शनि की दृष्टि हो, तो ऐसा जातक मृत्यु के बाद नर्क भोगता है। इस विद्या के अनुसार यह भी माना जाता है कि यदि जन्म-कुंडली में अष्टमस्थ शुक्र पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक मृत्यु के बाद वैश्य कुल में जन्म लेता है। इसके अलावा यदि अष्टम भाव पर मंगल और शनि, इन दोनों ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की अकाल मृत्यु होती है। आपकी जन्म-कुंडली में कौन सा ग्रह आपके पूर्वजन्म तथा पुनर्जन्म के बारे में क्या कहता है यह आपको कोई अनुभवी ज्योतिषी ही बता सकते हैं। इसके साथ ही आपकी जन्म-कुंडली का बिल्कुल सटीक बना होना भी जरूरी है।